ما أجمل هذا الهديل !
غنِّي يا جارة الوادي ملء الفم ِ
غنِّي للصباحات
للخمائل
للسواقي،
وامشي في دمي
وا جارتاه !
أين من عيني تيك الخمائل ؟!
أين ذاك العطر ؟!
أين ذاك الزَّهر ؟!
أين كل ذلك من يدي ؟!
أين تيك الرَّوابي ؟!
أين تيك الهضاب ؟!،
وأين يومي هذا من غدي ؟!.